स्वप्न लगभग सब देखते हैं, मैं भी और आप भी. याद रहे ना रहे. सामान्यत: स्वप्न के दो रूप होते हैं, एक जो चेतनावस्था में देखा जाता है. दूसरा जो अवचेतनास्था में देखा जाता है. चेतनावस्था में देखा गया स्वप्न कल्पना कहलाता है, उम्मीदों और ख्वाहिशों से जुड़ा हुआ. अवचेतनावस्था में देखा गया स्वप्न उम्मीदों और ख्वाहिशों से परे मनोवैज्ञानिक यथार्थ पर निर्भर करता है. यह सामान्य: निद्रावस्था में देखा गया स्वप्न होता है. कल्पनाओं को याद रखने के मुकाबले निद्रावस्था में देखे गये स्वप्न को याद रखना मुश्किल होता है. यह कल्पनाओं से भी परे, जगत के सामान्य और प्रचलित चलन से भी परे, कुछ भी हो सकता है. ऐसे में उसकी जानकारी और उसका आकलन महत्त्वपूर्ण लगा. चूँकि मनुष्य के जीवन में स्वप्न की बहुआयामी भूमिका होती है. इसी को ध्यान में रखकर मैंने ब्लॉग के माध्यम से इसे व्यक्त करने का उद्देश्य स्वीकार किया है.
मुझे अपनी निद्रावस्था में देखा गया स्वप्न याद नहीं रहता है. ऐसे में लोगों से पूछकर, सुनकर ब्यौरों के साथ जो कथा मिलती है उसी को इस ब्लॉग में प्रस्तुत किया करूँगा. आप सभी के स्वप्न टिप्पणियों व सुझावों के साथ आमंत्रित है. आइये मिलकर स्वप्न जगत का रहस्य खोलें. आरंभ करता हूँ इस स्वप्न कथा से….

Friday, July 18, 2008

धन ही मनुष्य को कुलीन बनाता है

किसी आचार्य ने कहा है "धन ही मनुष्य को कुलीन बनाता है". मनुष्य के पहचान में धन की इतनी बड़ी भूमिका क्यों है? कर्म की भूमिका का ज़िक्र अथवा उसका भी कोई महत्त्वपूर्ण स्थान क्यों नहीं तय किया जाता है. इसी तरह के चिंतन में दिमाग को उलझाए सड़क पर चला जा रहा था. एक जगह भुट्टा वाला दिखा. भुट्टा पका के बेच रहा था. 5 रूपये में एक. फटे-चिथड़े बनियान में, काला-कलूटा, दूबला,ँ आँखें धंसी हुई. उम्र लगभग 50-55 बीच. भुट्टा खाने के इरादे से उसके पास पहुँचा. उससे उसका कोई भी एक स्वप्न पूछा जिसे रात में सोने के बाद देखा हो. मेरा निवदेन स्वीकार किया और एक स्वप्न सुनाने लगा.
अचानक घर का दरवाजा खुला. दो आदमी मेरे घर में घुस आए. मैं पहचान नहीं पाया उन्हें. घर के सामान उठाकर बाहर फेंकने लगे. एक ने कस के एक लात मारा. कि अचानक एक बैल को दौड़कर आते हुए देखा. वह मेरे बच्चे को पैर से कुचल कर भाग गया. मैं जहाँ अभी भुट्टा बना रहा हूँ वहीं लेट गया, धूप मुझे तपाने लगा. आस-पास से लोग गुज़र रहे थे. ढेर सारी गाड़ियों को चलते देख रहा था. कि एक गाड़ी बड़ी तेजी से मेरे पास आने लगी. मुझे लगा मेरे उपर चढ जाएगी. इससे पहले कि गाड़ी मेरे उपर चढ़े, मेरी नींद खुल गयी.

बाद में ये भी बताया कि सपने में कहीं पत्नी नहीं दिखी. कोई बच्चा अब नहीं है. दो बच्चे बड़े हो गए हैं और मुम्बई में हैं. दिल्ली की एक झुग्गी में पत्नी के साथ रहते हैं. पत्नी कुछ घरों में सफाई करके कमाती है. इन्हीं कमाइयों से उनका गुजारा चल रहा है. उनकी हक़ीकत सुनकर और भारत की व्यवस्था को देखकर समझ में आया कि ऐसा सपना क्यों देखा.

Thursday, July 17, 2008

डरावनी लिफ्ट

एक मित्र जो दिल्ली का निवासी है, उसने अपना स्वप्न कुछ इस तरह बताया....
किसी बहुमंजिला अपार्टमेंट में नीचे के पार्क में पार्टी हो रही थी. अचानक बहुत तेज लेट्रिन आ गई. किसी परिचित का मकान टाप फ्लोर पर था. मैं वहाँ जाने के लिए लिफ्ट की तरफ भागा. देखा लिफ्ट एकदम दुबला-पतला और छोटा. मैं उसमें समा सकता था लेकिन ठूसठास कर किसी भी तरह, देखकर ऐसा ही लगा.
लिफ्ट ऐसा था जैसे टूटे-फूटे लकड़ियों को जोड़कर बनाया गया है. उसमें लाइट भी नहीं थी. भयानक अंधेरा दिख रहा था. लेट्रिन का दबाव होते हुए भी ऐसा लगा कि यदि उसमें गया तो दम घुट जाएगा. दूसरे लिफ्ट की तरफ भागा. आसपास बहुत सारे लिफ्ट नज़र आने लगे. लेकिन सब वैसे ही थे जैसा पहले देखा था. चढने की हिम्मत नहीं हुई. मजबूरन मैं बालकनी को पकड़कर उसी तरह चढने का प्रयत्न करने लगा जैसा कोई शातीर चोर उपर की तरफ चढने के लिए करता है. अचानक हाथ छूटा और मैं नीचे की तरफ गिरा. इससे पहले की ज़मीन पर गिरूँ आँखें खुल गई और मैं नींद से बाहर आ गया. पेट में दर्द हो रहा था, वाकई लेट्रिन लगा था.
मित्र की तरह मेरे समझ में भी नहीं आया कि सपने में इस तरह का लिफ्ट क्यो दिखा.

Wednesday, July 9, 2008

भागमभाग

आज एक पड़ोसी से बात हुई. उसने अपना स्वप्न कुछ विस्तार से सुनाया जो कल रात उसने सोते हुए देखा था. मैं उसका संक्षिप्त रूप प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
एक जंगल में पता नहीं कैसे पहुँचा. वहाँ कुछ लोग कुछ लोगों को जान से मार रहे थे. मैं पहचान नहीं पाया कि कौन किसको जान से मार रहा है. मारने के लिए तलवारों और भालों का प्रयोग किया जा रहा था. अचानक कुछ लोग मेरे पीछे दौड़े, मैं भागा. भागता गया भागता गया......
कि रेड लाइट मिली और मुझे अपनी बाइक को रोकना पड़ा. लाइट ग्रीन होते ही मैंने यू टर्न ले लिया और देखा कि घर में ढेर सारे पुलिसवाले खड़े हैं. मेरे घर में घुसते ही सबकी नज़रें मुझे देखने लगी. कि फट से मेरी नींद खुल गई.

पड़ोसी को समझ में नहीं आया कि क्यों सपनों में अचानक सबकुछ बदल जाता है. इसका कारण तो सही अर्थों में मैं भी नहीं जानता, लेकिन मेरे पूछने पर उसने यह जरूर स्वीकार किया कि इन दिनों न्यूज चैनलों में अपराध की खबरें वे ज्यादा देखते हैं.