गाँव में आंगन के बीच में मंडप है। बहुत सारे लड़के एवं लड़कियां आंगन में बिछे दरी पर बैठे थे। कुछ लोग मंडप में भी बैठे थे। घर के चबूतरे पर चार कुर्सी लगी थी। कुर्सी के आगे कोई टेबल नहीं। उन कुर्सियों पर वही चार लोग बैठे थे जो हमारे ऑफिस में नौकरी के लिए इंटरव्यू लेते हैं। (मित्र ने इस सेलेक्शन कमिटी के सभी सदस्य का नाम भी बताया था जिसे यहां लिखना उचित नहीं लगा) मैंने देखा आंगन में मेरा मित्र भी बैठा है जिसका मैं कंपनी में नौकरी लगवाना चाहता हूँ। बॉस चबूतरे से नाम लेते थे। आंगन से लड़की खड़ी होती थी। कुछ मामूली सवाल पूछे जाते थे। जवाब दिया जाता था। बहुत जल्दी यह खुला साक्षात्कार समाप्त हो गया। शायद एक सेलेक्टेड लड़की के नाम की घोषणा भी कर दी गई। वह नाम मुझे याद नहीं आ रहा है। मेरा मित्र तभी खड़ा हुआ, शायद कुछ बोलना चाहता था लेकिन उसके दुखी चेहरे को देखते ही मेरी आँखें खुल गई।
मित्र को अजीब यह लगा कि गाँव के आंगन चबूतरे पर इस तरह के इंटरव्यू का सपना कैसे आ गया? जबकि कंपनी में ऐसा कुछ होता ही नहीं है। उसका भी इंटरव्यू ऐसा नहीं हुआ था।
अंतत: यह बता दूँ कि मेरा मित्र मूलत: ग्रामीण है जो ग्रेजुएट होने के बाद मुंबई गया था। काफी साल हो चुका है। अब तो मुंबई में दो बच्चों के साथ विधिवत बसा हुआ है। गाँव गए भी कई साल हो गए।
1 comment:
sapno ki duniya bahut hi vichitra hoti h jo hota h vo ghata hua hota h pr na jane hum usko kisi aur hi dhang se dekhte h isi tarah ke sapne mujhe bhi aate hain pr mai aksar unhe avoid karti hu
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