स्वप्न लगभग सब देखते हैं, मैं भी और आप भी. याद रहे ना रहे. सामान्यत: स्वप्न के दो रूप होते हैं, एक जो चेतनावस्था में देखा जाता है. दूसरा जो अवचेतनास्था में देखा जाता है. चेतनावस्था में देखा गया स्वप्न कल्पना कहलाता है, उम्मीदों और ख्वाहिशों से जुड़ा हुआ. अवचेतनावस्था में देखा गया स्वप्न उम्मीदों और ख्वाहिशों से परे मनोवैज्ञानिक यथार्थ पर निर्भर करता है. यह सामान्य: निद्रावस्था में देखा गया स्वप्न होता है. कल्पनाओं को याद रखने के मुकाबले निद्रावस्था में देखे गये स्वप्न को याद रखना मुश्किल होता है. यह कल्पनाओं से भी परे, जगत के सामान्य और प्रचलित चलन से भी परे, कुछ भी हो सकता है. ऐसे में उसकी जानकारी और उसका आकलन महत्त्वपूर्ण लगा. चूँकि मनुष्य के जीवन में स्वप्न की बहुआयामी भूमिका होती है. इसी को ध्यान में रखकर मैंने ब्लॉग के माध्यम से इसे व्यक्त करने का उद्देश्य स्वीकार किया है.
मुझे अपनी निद्रावस्था में देखा गया स्वप्न याद नहीं रहता है. ऐसे में लोगों से पूछकर, सुनकर ब्यौरों के साथ जो कथा मिलती है उसी को इस ब्लॉग में प्रस्तुत किया करूँगा. आप सभी के स्वप्न टिप्पणियों व सुझावों के साथ आमंत्रित है. आइये मिलकर स्वप्न जगत का रहस्य खोलें. आरंभ करता हूँ इस स्वप्न कथा से….

Saturday, April 24, 2010

खुला साक्षात्कार

सिर्फ़ अपना सपना बताने के लिए एक मित्र ने फोन किया। वह मुंबई के एक एम.एन.सी. में काम करता है। अपने कंपनी में ही अपने एक साथी को भी नौकरी पर लगाना चाहता है। इसी प्रयास में इन दिनों लगा हुआ है। खैर… वह अपने स्वप्न को कुछ यूँ बताता है :
गाँव में आंगन के बीच में मंडप है। बहुत सारे लड़के एवं लड़कियां आंगन में बिछे दरी पर बैठे थे। कुछ लोग मंडप में भी बैठे थे। घर के चबूतरे पर चार कुर्सी लगी थी। कुर्सी के आगे कोई टेबल नहीं। उन कुर्सियों पर वही चार लोग बैठे थे जो हमारे ऑफिस में नौकरी के लिए इंटरव्यू लेते हैं। (मित्र ने इस सेलेक्शन कमिटी के सभी सदस्य का नाम भी बताया था जिसे यहां लिखना उचित नहीं लगा) मैंने देखा आंगन में मेरा मित्र भी बैठा है जिसका मैं कंपनी में नौकरी लगवाना चाहता हूँ। बॉस चबूतरे से नाम लेते थे। आंगन से लड़की खड़ी होती थी। कुछ मामूली सवाल पूछे जाते थे। जवाब दिया जाता था। बहुत जल्दी यह खुला साक्षात्कार समाप्त हो गया। शायद एक सेलेक्टेड लड़की के नाम की घोषणा भी कर दी गई। वह नाम मुझे याद नहीं आ रहा है। मेरा मित्र तभी खड़ा हुआ, शायद कुछ बोलना चाहता था लेकिन उसके दुखी चेहरे को देखते ही मेरी आँखें खुल गई।

मित्र को अजीब यह लगा कि गाँव के आंगन चबूतरे पर इस तरह के इंटरव्यू का सपना कैसे आ गया? जबकि कंपनी में ऐसा कुछ होता ही नहीं है। उसका भी इंटरव्यू ऐसा नहीं हुआ था।
अंतत: यह बता दूँ कि मेरा मित्र मूलत: ग्रामीण है जो ग्रेजुएट होने के बाद मुंबई गया था। काफी साल हो चुका है। अब तो मुंबई में दो बच्चों के साथ विधिवत बसा हुआ है। गाँव गए भी कई साल हो गए।

1 comment:

khud ko pahachano said...

sapno ki duniya bahut hi vichitra hoti h jo hota h vo ghata hua hota h pr na jane hum usko kisi aur hi dhang se dekhte h isi tarah ke sapne mujhe bhi aate hain pr mai aksar unhe avoid karti hu