दरवाज़े की घंटी बजी. घर में सब थे. पुत्र, बहु, दोनों बच्चे. सब अपने में मस्त. कोई दरवाज़ा नहीं खोल रहा था. घंटी बजती रही. मेरा सिर दर्द से फटने लगा. मन में आया इन घरवालों का गला दबा दूँ. यही सोचते-सोचते जाकर दरवाज़ा खोला. सामने एक भैंस पर बैठा हुआ गंजू दिखा. (गंजू गाँव में रहनेवाला नाई है. काला-कलूटा, लेकिन गंजा बिल्कुल नहीं है. मुंडन में जब उसे गंजा किया गया था तो देखने में बड़ा अजीब लगता था. इसलिए हमने उसे गंजू कहना शुरू कर दिया. तब से वह गंजू के रूप में ही विख्यात है.) सिर पे मुरेठा बांधे, हाथ में एक छड़ी. भैंस घास चरने में मग्न और गंजू भैंस पर बैठा ज़ोर से चिल्ला रहा था. अचानक उसने मुझे देख लिया. देखते ही झट से नीचे उतर कर मुझे प्रणाम किया. गाँव के और कई जान पहचान के लोग खेतों में हल चला रहे थे. भैंस अचानक किसी के खेत का धान खाने लगा और गंजू उसे रोकने भागा. तब तक मैं भी कुदाल हाथ में ले लगा खेत जोतने. सीना धड़कने लगा जोर-जोर से, साँसें लम्बी हो गई और नींद खुल गई.
वृद्ध को स्वप्न इसलिए अच्छा लगा और अक्सर याद रखते हैं क्योंकि गंजू उसमें आया था. जो नीची जाति का होते हुए भी उसका अपना था. दानों अपना सुख-दुख एक दूसरे से कथात्मक तरीके से बाँटते थे.
मुझे सहज की समझ में आ गया कि उनका ये स्वप्न अनचाहे और अनुपयुक्त वर्तमान में अतीत का स्मृति-मूलक जीवंत हस्तक्षेप है.
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