स्वप्न लगभग सब देखते हैं, मैं भी और आप भी. याद रहे ना रहे. सामान्यत: स्वप्न के दो रूप होते हैं, एक जो चेतनावस्था में देखा जाता है. दूसरा जो अवचेतनास्था में देखा जाता है. चेतनावस्था में देखा गया स्वप्न कल्पना कहलाता है, उम्मीदों और ख्वाहिशों से जुड़ा हुआ. अवचेतनावस्था में देखा गया स्वप्न उम्मीदों और ख्वाहिशों से परे मनोवैज्ञानिक यथार्थ पर निर्भर करता है. यह सामान्य: निद्रावस्था में देखा गया स्वप्न होता है. कल्पनाओं को याद रखने के मुकाबले निद्रावस्था में देखे गये स्वप्न को याद रखना मुश्किल होता है. यह कल्पनाओं से भी परे, जगत के सामान्य और प्रचलित चलन से भी परे, कुछ भी हो सकता है. ऐसे में उसकी जानकारी और उसका आकलन महत्त्वपूर्ण लगा. चूँकि मनुष्य के जीवन में स्वप्न की बहुआयामी भूमिका होती है. इसी को ध्यान में रखकर मैंने ब्लॉग के माध्यम से इसे व्यक्त करने का उद्देश्य स्वीकार किया है.
मुझे अपनी निद्रावस्था में देखा गया स्वप्न याद नहीं रहता है. ऐसे में लोगों से पूछकर, सुनकर ब्यौरों के साथ जो कथा मिलती है उसी को इस ब्लॉग में प्रस्तुत किया करूँगा. आप सभी के स्वप्न टिप्पणियों व सुझावों के साथ आमंत्रित है. आइये मिलकर स्वप्न जगत का रहस्य खोलें. आरंभ करता हूँ इस स्वप्न कथा से….

Monday, September 1, 2008

अतीत का स्मृति-मूलक जीवंत हस्तक्षेप

दिन में सोया हुआ व्यक्ति स्वप्न देख सकता है. एक परिचित वृद्ध से बात हुई. दिनभर का समय अक्सर अकेलेपन में गुजरता है. कुछ देर टीवी देखकर, कुछ देर रामायण पढकर और कुछ देर सोकर समय बिताते हैं. मेरे पूछे जाने पर उन्होंने एक स्वप्न सुनाया जिसे कुछ दिन पहले उन्होंने देखा था. स्वप्न कुछ इस तरह सुनाया:
दरवाज़े की घंटी बजी. घर में सब थे. पुत्र, बहु, दोनों बच्चे. सब अपने में मस्त. कोई दरवाज़ा नहीं खोल रहा था. घंटी बजती रही. मेरा सिर दर्द से फटने लगा. मन में आया इन घरवालों का गला दबा दूँ. यही सोचते-सोचते जाकर दरवाज़ा खोला. सामने एक भैंस पर बैठा हुआ गंजू दिखा. (गंजू गाँव में रहनेवाला नाई है. काला-कलूटा, लेकिन गंजा बिल्कुल नहीं है. मुंडन में जब उसे गंजा किया गया था तो देखने में बड़ा अजीब लगता था. इसलिए हमने उसे गंजू कहना शुरू कर दिया. तब से वह गंजू के रूप में ही विख्यात है.) सिर पे मुरेठा बांधे, हाथ में एक छड़ी. भैंस घास चरने में मग्न और गंजू भैंस पर बैठा ज़ोर से चिल्ला रहा था. अचानक उसने मुझे देख लिया. देखते ही झट से नीचे उतर कर मुझे प्रणाम किया. गाँव के और कई जान पहचान के लोग खेतों में हल चला रहे थे. भैंस अचानक किसी के खेत का धान खाने लगा और गंजू उसे रोकने भागा. तब तक मैं भी कुदाल हाथ में ले लगा खेत जोतने. सीना धड़कने लगा जोर-जोर से, साँसें लम्बी हो गई और नींद खुल गई.

वृद्ध को स्वप्न इसलिए अच्छा लगा और अक्सर याद रखते हैं क्योंकि गंजू उसमें आया था. जो नीची जाति का होते हुए भी उसका अपना था. दानों अपना सुख-दुख एक दूसरे से कथात्मक तरीके से बाँटते थे.
मुझे सहज की समझ में आ गया कि उनका ये स्वप्न अनचाहे और अनुपयुक्त वर्तमान में अतीत का स्मृति-मूलक जीवंत हस्तक्षेप है.

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